1971 में हुए भारत पाक युद्ध में (लोंगेवाला चेकपोस्ट पर) सेक्टर 33 चंडीगढ़ के रहने वाले ब्रिगेडियर(रि.) कुलदीप सिंह चांदपुरी ने एक अहम भूमिका निभाई थी। 1997 में आई बॉर्डर फिल्म इन्हीं पर बनी है। चांदपुरी ने अपने 90 सैनिकों के साथ पाक के 2000 सैनिकों का मुकाबला किया और उन्हें खदेड़ दिया।
पाक ने लोंगेवाला चेकपोस्ट पर किया अटैक
1971 में ये दिन भारत-पाक में छिड़ी पूरी जंग के आखिरी दिन थे। दरअसल 4 दिसंबर की उस रात को भारत पाकिस्तान के रहीमयार खान डिस्ट्रिक्ट क्वार्टर पर अटैक करने वाला था। किन्हीं वजहों से भारत अटैक नहीं कर पाया, पर बीपी 638 पिलर की तरफ से आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान ने भारत की लोंगेवाला चेकपोस्ट पर अटैक कर दिया। यहां से उनका जैसलमेर जाने का प्लान था। आगे क्या हुआ चांदपुरी की जुबानी लोंगेवाला चेकपोस्ट पर हुई जंग की कहानी…
जंग की कहानी
‘उस वक्त लोंगेवाला चेकपोस्ट मुझे मिलाकर सिर्फ 90 जवानों की निगरानी में थी। हमारी कंपनी के 29 जवान और लेफ्टिनेंट धर्मवीर इंटरनेशनल बॉर्डर की पैट्रोलिंग पर थे। देर शाम हमें उन्हीं से जानकारी मिली कि दुश्मन के बहुत सारे टैंक एक पूरी ब्रिगेड के साथ लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रहे हैं। उस ब्रिगेड में 2 हजार से ज्यादा जवान रहे होंगे। मैं सोच में था, कुछ ही पलों बाद उस लश्कर का सामना मुझे छोटी सी टुकड़ी के साथ करना था। मैंने मदद मांगी पर उस वक्त मदद मिल नहीं पाई, न जमीनी न हवाई।
मैं ठहरा पंजाबी का बच्चा कहां पीछे हटने वाला था। मैं और मेरी कंपनी के जवान मुंहतोड़ जवाब के लिए तैयारी में लग गए। कुछ ही देर बाद पाकिस्तानी टैंकों ने गोले बरसाते हुए हमारी पोस्ट को घेर लिया। वे आगे बढ़ते जा रहे थे और उनके पीछे पाकिस्तानी सेना। हमने भी जीप पर लगी रिकॉयललैस राइफल और 81एमएम मोर्टार से जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी।
हमारी शुरुआती कार्रवाई इतनी दमदार थी कि उसके आगे उन्होंने कुछ दूरी पर रुककर हमसे जंग लड़ने का फैसला किया। वे हजार से ज्यादा थे और हम 100 से भी कम। वो रात इम्तिहान की रात थी। शैलिंग के थमते कुछ सुनाई दे रहा था तो गूंज रहे शब्द ‘जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल।’
पाक की योजना थी जैसलमेर पर कब्जा
पाकिस्तानी सेना के इरादे के मुताबिक वे हमारी चेकपोस्ट पर कब्जा कर रामगढ़ से होते हुए जैसलमेर तक जाना चाहते थे। पर हमारे इरादे भी फौलादी थे, जो दीवार बन कर उनके समाने खड़े थे। बस हमें आखिरी दम तक खड़े रहना था। रात में अब थोड़ा-थोड़ा दिन घुलने लगा था। अब तक मेरी छोटी सी टुकड़ी ने दुश्मन के 12 टैंक तबाह कर दिए थे।
गोलीबारी जारी ही थी कि हमें इंडियन एयरफोर्स से मदद मिल गई। दो हंटर विमानों ने पाकिस्तानियों के परखच्चे उड़ा दिए। वे बौखलाए टैंक लेकर इधर-उधर दौड़ने लगे। सुबह के बाद तक हम पाकिस्तानी सेना को उन्हीं की हद में 8 किलोमीटर अंदर तक खदेड़ चुके थे।
14 दिसंबर 1971: ‘हम पाकिस्तान की हद में बैठे खाना खा रहे थे’
‘5 दिसंबर के दिन हम दुश्मन को खदेड़ते हुए पाकिस्तान के अंदर 8 किलोमीटर तक जा घुसे। 16 दिंसबर तक हमने वहीं पर डेरा जमाए रखा। वहीं खाना बनता और वहीं पर खाते। मुझे अच्छे से याद है 14 दिसंबर की सुबह भी हम पाकिस्तान की हद में बैठे नाश्ता कर रहे थे जबकि पाकिस्तानी बिग्रेड इस इरादे के साथ हमारी ओर बढ़ी थी कि 5 दिसंबर को उनका नाश्ता लोंगेवाला में होगा, दोपहर का खाना रामगढ़ में और रात का खाना जोधपुर में। 16 दिसंबर तक भारत ने जंग जीत ली। इसके बाद हम अपनी हद में वापिस आ गए थे।
मंदिर को आंच नहीं आई
‘चेकपोस्ट के पास जवानों ने एक 10 बाय 10 का मंदिर बना रखा था। जंग में बुरी तरह क्षति हुई थी, चेकपोस्ट जल कर ख़ाक हो गई थी मगर मंदिर को आंच तक नहीं आई। युद्ध के बाद इंदिरा गांधी समेत तत्कालीन सेंट्रल मिनिस्टर जगजीवन राम, वीसी शुक्ला, बीएसएफ डायरेक्टर अश्वनी कुमार, राजस्थान के गवर्नर और मुख्यमंत्री सभी मंदिर को देखने आए। सभी को इस बात का आश्चर्य था कि इतने नुकसान के बावजूद मंदिर कैसे सलामत है।
सड़क से पहुंचे थे जहाज
जैसलमेर एयरबेस पर उस वक्त सिर्फ 4 हंटर एयरक्राफ्ट और सेना के ऑब्जर्वेशन पोस्ट के दो विमान थे। हंटर एयरक्राफ्ट रात के अंधेरे में हमला नहीं कर सकते थे। अब इंतजार सुबह का था। अल सुबह ही 2 हंटर विमान लोंगेवाला की तरफ निकल पड़े। उस वक्त रोशनी इतनी कम थी कि आसमान की ऊंचाई से जमीं का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था। तब न तो नेविगेशन सिस्टम इतना मॉडर्न था और न ही कोई लैंडमार्किंग थी।
ऐसे में दोनों विमान जैसलमेर से लोंगेवाला तक जाने वाली सड़क के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़े थे और धूल के गुबार में छिपे पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाया था।
लोंगेवाला एक ऐतिहासिक जीत
कुलदीप सिंह चांद पुरी बताते हैं, ‘लोंगेवाला की लड़ाई जीते हुए आज 43 साल बीत गए हैं। वहां एक ऐतिहासिक जीत मिली थी, पर आज की जेनरेशन इस बात से वाकिफ ही नहीं है कि लोंगेवाला है कहां? मैं चाहता हूं कि जिस तरह गुलाम भारत के वीरों की कहानी बच्चों को पता है, उसी तरह आजाद भारत के सैनिकों की दास्तां भी हर किसी को मालूम होनी चाहिए।
हर साल दिसंबर के महीने में जंग के दिनों की यादें ताजा हो जाती हैं। यह दुनिया की पहली ऐसी जंग थी जो सिर्फ 13 दिन तक ही लड़ी गई। 16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान ने 93000 सैनिकों के साथ हिंदुस्तान के आगे सरेंडर किया था। इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।’
गमनेवाला में आज भी नहीं पीते कुएं से पानी
लोंगेवाला के पास एक गांव गमनेवाला है। जंग के दिनों में पाकिस्तानी सेना ने उस गांव के सभी कुओं में जहर मिला दिया था। हालांकि सरकार ने जंग के बाद जांच करवाई थी, बावजूद इसके उस गांव के लोग आजतक उन कुओं से पानी नहीं पीते।
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